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विषय
शतक उद्देशक भाग पृष्ठ केवलियों के हाथ आदि से अवगाहित प्रदेशों
को पुन: न अवगाह सकना । ५. ४ २ ८२८- ३० कुलकर, तीर्थंकर का वर्णन समवायांग निर्देश ५ ५ २ ७३६- ३९ क्रियाएँ आरंभिकी आदि, चोरी की हुई वस्तु
को शोधते हुए को तथा खरीदने-बेचने
वालों को कितनी क्रियाएँ लगती है ५ ६ २ ८४५- ५ क्रियाएँ कायिकी आदि, पुरुष, धनुष, शरीर आदि को कितनी लगती है
५ ६ २ ८५२- ५६ काल (समय आदि) का वर्तन मनुष्य-क्षेत्र में ही ५ ९ २ ९१९- २१ करण ४ का चौबीस दण्डक संबंधी वर्णन ६ -१ ।२ ९३८- ४१ कर्म-पुद्गलों के सर्वतः बंध व निर्जरा पर वस्त्र का उदाहरण
____६ ३ . २ ९४५-- ६५६ कर्म के भेद जघन्य व उत्कृष्ट स्थिति, अबाधाकाल
६ ३ २ ९५७- ५९ कर्म-प्रकृतियाँ वेद से चरमाचरम तक कौन कितनी बांधता है
६ ३ २ ९६०- ७६ कालाश्रित जीवादि सप्रदेशी हैं या अप्रदेशी ६ ४ २ ९७७- ९५ कृष्णराजियों का वर्णन
६ ५ २ १०११- १८ काल (गणनीय-उपमेय) वर्णन, आरों का स्वरूप ६ ७ २: १०३३- ४४ कर्म रहित जीव की गति तुम्बे का दृष्टान्त ७ १ ३ १०८७- ९१ कर्म सहित जीव ही दुःखों से व्याप्त होता है ग्रहण, उदीरणा, वेदनादि
७ १ ३ १०९१- ९३ कर्कश वेदनीय अकर्कशवेदनीय का बंध ७ ६ ३ ११५३- ५६ काम-भोगों का रूपी-अरूपी आदि स्वरूप ७ ७ ३ ११६९- ७५ कोणिक राजा को शकेंद्र, चमरेंद्र की सहायता ७ ९ ११९.-१२१३ कालोदायी की पंचास्तिकाय संबंधी चर्चा व प्रतिबोध ७ १० ३ . १२१४- २१ क्रिया वर्णन प्रज्ञापना पद २२ का निर्देश ८ ४ .. ३ १३७३- ७४
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