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भगवती सूत्र-श. ४० अवान्तर शतक ५
है । इसलिये यह पूर्वोक्त स्थिति घटित हो सकती है।
॥ चालीसवें शतक का चौथा अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥
अवांतर शतक ५ -एवं तेउलेस्सेसु वि संयं । णवरं संचिट्ठणा जहण्णेणं एक समयं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेजहभागमभहियाई । एवं ठिईए वि । णवरं णोसण्णोवउत्ता वा । एवं तिसु वि उद्देसएसु, सेसं तं चेव। .
* 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति। * ॥ चत्तालीसहमे सए पंचमं सण्णिमहाजुम्मसयं समत्तं ॥
भावार्थ-तेजोलेश्या में भी इसी प्रकार शतक हैं। विशेष में-संचिटणा काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागरोपम है । स्थिति भी इसी प्रकार, किन्तु यहां नोसंज्ञोपयुक्त भी होते हैं। इस प्रकार तीनों उद्देशकों में भी समझना चाहिये । शेष पूर्ववत् ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'-- कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-यहाँ तेजोलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति कही है, वह ईशान देवलोक के देवों की उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा है।
॥ चालीसवें शतक का पांचवां अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥
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