Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 665
________________ (२) विषय शतक उद्देशक भाग पृष्ठ अनगार की वैभारगिरि उल्लंघने आदि की शक्ति, मायी साधु विकुर्वणा करता है, अमायी नहीं उनका आहार व आराधना वर्णन ३ ४ २ ६८१--६८६ अनगार की स्त्री आदि की विकुर्वणा की शक्ति और उनकी गति ३ ४ २ ६८६--६९६ अमाई सम्यग्दृष्टि द्वारा विकुवित नगरादि यथार्थ देखे जाते हैं, मिथ्यादृष्टि विपरीत देखता है ३ ६ २ ६९७-७०५ असुरादि देवों पर कितने-कितने अधिपति देव हैं ? ३ ८ २ ७२७- ३८ अढ़ाई द्वीप का रात्रि-दिवस आदि समय विभाग ५ १ २ ७५६-७४ अग्निकाय के संयोग से अन्यकाय भी अग्निकाय के शरीर कहे जाते हैं ५ २ २ ७८१-८५ अनुत्तर विमानवासी अपने स्थान से ही केवली से वार्तालाप करते हैं __ ५ ४ २ ८२४- २६ अनुत्तर विमानवासी देव उपशांत-वेदी . ५ ४ , २ ८२५-२६ अल्प-दीघ, शुभ-अशुभ आयु-बन्ध के कारण ५ ६ २ ८३९- ४५ अग्निकाय (तत्काल प्रदीप्त ) महाकर्मी व हीन होता है, क्रमशः अल्पतर कर्म वाला होता है ५ ६ २ ८५१- ५२ अभ्याख्यानी उसी प्रकार के कर्म बांधता है ५ ६ २ ८६२-६३ अनंत व परित्त रात्रि-दिवस किस हेतु है ५ ९ २ ९२१-९२७ अविशुद्ध-विशुद्ध लेश्या वाले देवों के जानने न जानने संबंधी १२ भांगे अनाहारक व अल्पाहारक जीव कब होता है ७ । ३ १०७८-८. अकाम (अनिच्छा से)प्रकाम (तीव्र इच्छा से) निकरण (शक्ति के अभाव से) वेदना ७ ७ , ३ १.१७८-८२ अप्रत्याख्यान क्रिया हाथी व कुंथु को समान ७ ८ ३ ११८६-८७ असंवत (प्रमत्त) मनगार की विकुविणा का वर्णन ७ ९ ३ ११८८- ९. अग्नि जलाने वाले की अपेक्षा बुझाने वाला अल्पकर्मी है ___७ १०३ १२२५-२८ ا سه سه Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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