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विषय
शतक उद्देशक भाग पृष्ठ
आचार्य-उपाध्याय अपने कर्तव्य का पालन करते
हुए कितने भवों में मोक्ष जाते हैं ? ५ ६ २ ८६१--८६२ आरंभ परिग्रह आश्रित २४ दण्डकों का वर्णन ५ ७ २ ८८४-- ६० आहार वर्णन पर प्रज्ञापना पद २८ का निर्देश ६ २ २ १४४ मायुष्य बंध जाति, नाम आदि के छ: भेद ६८२ १०५१- ५६ आहार ग्रहण करने के क्षेत्र
२ १०७४ आयुष्य बंध अनाभोग अवस्था में ही होता है
३ ११५३ आशीविषाधिकार
८ २ ३ १२८८--९६ आराधना-अधिकार
३ १५४१--४७ आलोचना से आरधिना व अनालोचक के विचार ८ ६ ३ १९९९-१४०५ आत्मा के आठ भेदों का परस्पर संबंध व अल्प-बहुत्व १२ १० ४ २१.५--१५ आत्मा से ज्ञानादि का भेदाभेद
१२ १० ४ २११५-१७ आत्मा, नो आत्मा, अव्यक्तादि रत्नप्रभा से
सिद्धशिला तक तथा परमाणु से अनन्तप्रदेशी स्कंध तक के भांगे
१२ १० ४ २११७--३२ आहार सचित्त आदि पर प्रज्ञापना पद २८ .' का निर्देश
१३ ५ ५ २२२६ आत्मा भाषा, मन व काय स्वरूप है या नहीं. १३ ७ ५ २२४५--५४ आहार-त्यागी मुनि के आहार का वर्णन १४ ७ ५ २३३६-३८ आत्मकृत दुःख वेदना आदि वर्णन
१७ ४ ५ २६२७--२६ आहार रूप से ग्रहण किए पुद्गलों का असंख्यातवां भाग प्रहित होता है, अनन्तवा भाग त्याज्य होता, ___ उन पर शयनादि नहीं होता
१८ ३ ६ २६९०--९१ आकाश के भेद व उनमें जीव-अजीव विचार - २० २ ६ २८३४-३६
इहभव, परभव, उभयभव आश्रित ज्ञानादिक
का विचार
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