Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 664
________________ भगवती सूत्र की हुण्डी--अकारानुक्रम से ( गंगाहक -श्री धीमूलाल जी पितलिया, सिरियारी ) अ६4 शतक उद्देशक भाग पृष्ट १ १ १ २ ९४-१०१ . १ १०१-१०९ १ १५१-१५२ ६ १ १५२--१५६ १ १५९-१६२ १ . २८२-२८५ १ ३३०-३३२ ९ ९ १ ३३०-~३३९ असंवृत्त-संवृत्त अनगार के सिद्ध होने न होने १ असंयती अव्रती किस कारण से देव होते हैं । अन्तक्रिया वर्णन पर प्रज्ञा पना पद २० का निर्देश १ असंयत भव्य द्रव्य-देवादि १४ प्रकार के जीव देवों . में कहाँ तक उत्पन्न होते हैं असंज्ञी के आयुष्य का भेद विचार अप्काय-स्नेहकाय का गिरना आदि १ अठारह पापों के सेवन व त्याग का परिणाम १ (श. १२ उ. २ भाग ४ पृ. १९९०-११ भी) अगरु-लघऔर गरु-लघ का विचार १ अप्रत्याख्यान क्रिया अव्रत की अपेक्षा राजा-रंक को समान लगती है १ अस्थिर, स्थिर, बाल, पंडित, बालत्व-पंडितता १ अभिगम पाँच का वर्णन २ अस्तिकाय पांच का वर्णन २ असुरकुमारों का निवास स्थान, तिरछी आदि गति गमन हेतु, वैमानिक अप्सराओं से गमनाधिकार ३ असुरकुमार कितने काल से व किसकी सहायता से ऊर्ध्वगमन करते हैं आदि वर्णन असुरकुमारों के उर्ध्वगमन के हेतु ३ अन्तक्रिया (अयोगी) अकंप अवस्था में होती है, घास के पूले, जलबिंदु व नावा का दृष्टांत ३ अवधिज्ञानी साधु द्वारा देव विमान वृक्षादि देखने । की चौभंगिया ९ ५ १० . ३५३--- ५४ १ ३६०-६१ १ ४७८-७९ १५१२---५३२ २ २ ६०६- १४ و سه سد २ २ ६४८- ५० ३ . २ ६५६- ६५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692