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भगवती सूत्र-श. ४१ उ. ६-८.
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..............-----..... 8 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति ४१-५ *
॥ पंचमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! राशि-यग्म में कृतयुग्म राशि कृष्णलेश्या वाले नरयिक कहां से आ कर उत्पन्न होते हैं.? ..
१ उत्तर-हे गौतम ! धूमप्रभा पृथ्वी के समान उपपात है, शेष पूर्ववत् प्रथमोद्देशक के अनुसार । असुरकुमार के विषय में भी इसी प्रकार यावत् वाणव्यन्तर पर्यन्त । नरयिक के समान मनुष्य का वर्णन है वे आत्म-असंयम युक्त जीवन-निर्वाह करते हैं । अलेशी, अक्रिय और उसी भव में सिद्ध होने का कथन नहीं करना चाहिये । शेष प्रथमोद्देशक के समान है।
॥ इकतालीसवें शतक का पांचवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥.
शतक ४१ उद्देशक ६-८ -कण्हलेस्सतेओएहि वि एवं चेव उद्देसओ। ४१-६।
॥ छट्ठो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-कृष्णलेश्या वाले राशि-युग्म में त्र्योज-राशि नैरयिक आदि भी पूर्ववत् । -कण्हलेस्सदावरजुम्मेहिं एवं चेव उद्देसओ। ४१-७ ।
॥ सत्तमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-द्वापरयुग्म राशि कृष्णलेश्या वाले नैरयिक आदि का उद्देशक भी इसी प्रकार ।
_-कण्हलेस्सकलिओएहि वि एवं चेव उद्देसओ । परिमाणं संवेहो य जहा ओहिएसु उद्देसएसु । 'सेवं भंते० । ४१-८ ।
॥ अट्ठमो उद्देसो समत्तो ॥
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