Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 654
________________ भगवती सूत्र-श. ८१ उ. ५७-८४ ३८०५ ५-इसी प्रकार तेजोलेश्या वाले भवसिद्धिक जीवों के भी औधिक के समान चार उद्देशक हैं। ४५-४८ । ६-इसी प्रकार पद्मलेश्या वाले भवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक हैं। ४९-५२। ७-शुवललेझ्या वाले भवसिद्धिक जीवों के भी औधिक के समान चार उद्देशक जानो। इस प्रकार भवसिद्धिक जीवों के ये अट्ठाईस उद्देशक होते हैं । ५३-५६ । १ प्रश्न-अभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति ? । १ उत्तर-जहा पढमो उद्देसगो। णवरं मणुस्सा णेरइया य सरिसा भाणियव्वा । सेसं तहेव । 'सेवं भंते । एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा। - २ प्रश्न-कण्हलेस्स-अभवसिद्धिय-रासीजुम्मकडजुम्मणेरइया गं भंते ! कओ उववज्जति । - २ उत्तर-एवं चेव चत्तारि उद्देसगा। ३-एवं णीललेस्स-अभवसिद्धिय-रासीजुम्मकडजुम्मणेरइयाणं चत्तारि उद्देसगा। ४-काउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा। ५-तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा। ६-पम्हलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा। ७-सुक्कलेस्सअभवसिद्धिए वि चत्तारि उद्देसगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692