Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
________________
३८०८
भगवती सूत्र-गः ४१ उ. ११३--१९६
सरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायव्वा । 'सेवं भंते० । ११३-१४० उद्देसा समत्ता।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! राशि-युग्म में कृतयुग्म राशि मिथ्यादष्टि नरयिक कहाँ से आते हैं ?
१ उत्तर-यहां भी मिथ्यादृष्टि के अभिलाप से अभवसिद्धिक जीवों के समान अट्ठाईस उद्देशक जानना चाहिये ।
१ प्रश्न-कण्हपक्खियरासीजुम्मकडजुम्मणेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ?
१ उत्तर-एवं एत्थ वि अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायवा । 'सेवं भंते० १४१-१६८ उद्देसा समत्वा ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! राशि-युग्म में कृतयुग्म राशि कृष्णपाक्षिक नरयिक कहां से आते हैं ?
१ उत्तर-यहां भी अभवसिद्धिक के समान अट्ठाईस उद्देशक कहना।
१ प्रश्न-सुक्कपक्खियरासीजुम्मकडजुम्मणेरड्या णं भंते ! कओ उववज्जति ?
१ उत्तर--एवं एत्थ वि . भवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा भवंति । एवं एए सब्वे वि छण्णज्यं उद्देसगसयं भवंति रासीजुम्मसयं । जाव सुक्कलेस्सा सुक्कपक्खियरासीजुम्मकलिओगवेमाणिया जाव जइ सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझंति जाव अंतं करेंति ? (उत्तर) णो इणटे समटे । 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति ॥ १६९.-१९६ ॥ __ भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिण-पया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692