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भगवती-सूत्र-श. ४० अवांतर शतक १६
त्ति । अभवसिद्धियमहाजुम्मसयं समत्तं । ॥ चत्तालीसइमे सए पण्णरसमं सण्णिपंचिंदियमहाजुम्मसयं समत्तं ।।
भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन ! प्रथम समय के अभवसिद्धिक कृतयुग्मकृतयुग्म राशि संज्ञी पंचेंद्रिय जीव कहां से आते हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! प्रथम समय के संज्ञी उद्देशक के अनुसार, किन्तु सम्यक्त्व, सम्यगमिथ्यात्व और ज्ञान सर्वत्र नहीं होता। शेष पूर्ववत् । यहां भी ग्यारह उद्देशक है । इनमें से पहला, तीसरा और पांचवां, ये तीन उद्देशक एक समान हैं और शेष आठ उद्देशक एक समान हैं।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ चालीसवें शतक का पन्द्रहवां अवांतर शतक सम्पूर्ण ॥
अवांतर शतक १६
१ प्रश्न-कण्हलेस्सअभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते ! कओ उववजति ?
१ उत्तर-जहा एएसिं चेव ओहियसयं तहा कण्हलेस्ससयं पि । णवरं
प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा कण्हलेस्सा ?
उत्तर-हंता कण्हलेस्सा । ठिई, संचिट्ठणा य जहा कण्हलेस्सासए सेसं तं चेव । 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति। बिइयं अभवसिद्धिय
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