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भगवती सूत्र-श. ४१ उ. २
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उववज्जति । संतरं तहेव ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! राशि-युग्म में त्र्योज राशि नैरयिक कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् उद्देशक कहना चाहिये । परिमाण-तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। सान्तर पूर्ववत् ।
२ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा जं समयं तेओगा तं समयं कड. जुम्मा, जं समयं कडजुम्मा तं समयं तेओगा ?
२ उत्तर-णो इणटे समटे ।
भावार्थ-२ प्रश्म-हे भगवन् ! वे जीव जिस समय व्योज राशि होते हैं, उस समय वे कृतयुग्म राशि होते हैं और जिस समय कृतयुग्म राशि होते हैं, उस समय वे व्योज राशि होते हैं ?
२ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं।
३ प्रश्न-जं समयं तेओगा, तं समयं दावरजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं तेओगा ?
३ उत्तर-णो इणढे समटे । एवं कलिओगेण वि समं, सेसं तं चेव जाव वेमाणिया । णवरं उववाओ सम्वेसि जहा वकंतीए । * 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति ४१-२ ®
॥ बीओ उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव जिस समय योज राशि होते हैं, उस समय द्वापरयुग्म राशि होते हैं और जिस समय द्वापरयुग्म राशि होते हैं,
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