Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 646
________________ भगवती सूत्र-श. ४१ उ. २ ३७९७ उववज्जति । संतरं तहेव । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! राशि-युग्म में त्र्योज राशि नैरयिक कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् उद्देशक कहना चाहिये । परिमाण-तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। सान्तर पूर्ववत् । २ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा जं समयं तेओगा तं समयं कड. जुम्मा, जं समयं कडजुम्मा तं समयं तेओगा ? २ उत्तर-णो इणटे समटे । भावार्थ-२ प्रश्म-हे भगवन् ! वे जीव जिस समय व्योज राशि होते हैं, उस समय वे कृतयुग्म राशि होते हैं और जिस समय कृतयुग्म राशि होते हैं, उस समय वे व्योज राशि होते हैं ? २ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। ३ प्रश्न-जं समयं तेओगा, तं समयं दावरजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं तेओगा ? ३ उत्तर-णो इणढे समटे । एवं कलिओगेण वि समं, सेसं तं चेव जाव वेमाणिया । णवरं उववाओ सम्वेसि जहा वकंतीए । * 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति ४१-२ ® ॥ बीओ उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव जिस समय योज राशि होते हैं, उस समय द्वापरयुग्म राशि होते हैं और जिस समय द्वापरयुग्म राशि होते हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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