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भगवती सूत्र-श. ४० अवांतर शतक १७-२१
सयाणि । सव्वाणि वि एकासीइमहाजुम्मसयाई समत्ताई।
॥ चत्तालीसइमं सण्णिमहाजुम्मसयं समत्तं ॥
-जिस प्रकार कृष्णलेश्या का शतक कहा, उसी प्रकार छहों लेश्या के छह शतक कहना चाहिये । संचिटणा काल और स्थिति का कथन औधिक शतक के अनुसार कहना चाहिये । किंतु शुक्ललेश्या का उत्कृष्ट संचिटणा काल अन्तमुहर्त अधिक इकत्तीस सागरोपम होता है और स्थिति. पूर्वोक्त ही होती है, किंतु जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक नहीं कहनी चाहिये । सर्वत्र सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होता । विरति, विरताविरति और अनुत्तर विमानोत्पत्ति भी नहीं होती।
प्रश्न-हे भगवन ! सभी जीव यायत् सत्त्व यहां पहले उत्पन्न हुए हैं ? उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं ।
इस प्रकार ये सात अभवसिद्धिक महायुग्म शतक हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । इस प्रकार इक्कीस संजी पंचेन्द्रिय महायुग्म शतक कहे हैं। सभी मिला कर ८१ महायुग्म शतक सम्पूर्ण हुए।
विवेचन-अभव्य संज्ञी पंचेन्द्रिय की शुक्ललेश्या की स्थिति अन्तर्मुहूर्त अधिक इकतीस सागरोपम कही है। वह पूर्वभव के अन्तिम अन्तर्मुहुर्त सहित नौवें ग्रेवेयक की इकत्तीस सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा जाननी चाहिये । अभव्य जीव उत्कृष्ट नौवें अवेयक तक उत्पन्न होते हैं और वहां शुक्ललेश्या होती है।
एकेंद्रिय. बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय, इन पांच के प्रत्येक के बारह-बारह महायुग्म शतक हैं । संजी पंचेन्द्रिय के इक्कीस महायुग्म शतक हैं । इस प्रकार सभी मिला कर ये ८१ महायुग्मं शतक हुए।
॥ चालीसवें शतक के १७-२१ अवांतर शतक सम्पूर्ण ॥
॥ चालीसवाँ शतक सम्पूर्ण ॥
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