Book Title: Bhagvati Sutra Part 07
Author(s): Ghevarchand Banthiya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

Previous | Next

Page 635
________________ - ३७८६ भगवती सूत्र-श. ४० अवांतर शतक १७-२१ सयाणि । सव्वाणि वि एकासीइमहाजुम्मसयाई समत्ताई। ॥ चत्तालीसइमं सण्णिमहाजुम्मसयं समत्तं ॥ -जिस प्रकार कृष्णलेश्या का शतक कहा, उसी प्रकार छहों लेश्या के छह शतक कहना चाहिये । संचिटणा काल और स्थिति का कथन औधिक शतक के अनुसार कहना चाहिये । किंतु शुक्ललेश्या का उत्कृष्ट संचिटणा काल अन्तमुहर्त अधिक इकत्तीस सागरोपम होता है और स्थिति. पूर्वोक्त ही होती है, किंतु जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक नहीं कहनी चाहिये । सर्वत्र सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होता । विरति, विरताविरति और अनुत्तर विमानोत्पत्ति भी नहीं होती। प्रश्न-हे भगवन ! सभी जीव यायत् सत्त्व यहां पहले उत्पन्न हुए हैं ? उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । इस प्रकार ये सात अभवसिद्धिक महायुग्म शतक हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । इस प्रकार इक्कीस संजी पंचेन्द्रिय महायुग्म शतक कहे हैं। सभी मिला कर ८१ महायुग्म शतक सम्पूर्ण हुए। विवेचन-अभव्य संज्ञी पंचेन्द्रिय की शुक्ललेश्या की स्थिति अन्तर्मुहूर्त अधिक इकतीस सागरोपम कही है। वह पूर्वभव के अन्तिम अन्तर्मुहुर्त सहित नौवें ग्रेवेयक की इकत्तीस सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा जाननी चाहिये । अभव्य जीव उत्कृष्ट नौवें अवेयक तक उत्पन्न होते हैं और वहां शुक्ललेश्या होती है। एकेंद्रिय. बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय, इन पांच के प्रत्येक के बारह-बारह महायुग्म शतक हैं । संजी पंचेन्द्रिय के इक्कीस महायुग्म शतक हैं । इस प्रकार सभी मिला कर ये ८१ महायुग्मं शतक हुए। ॥ चालीसवें शतक के १७-२१ अवांतर शतक सम्पूर्ण ॥ ॥ चालीसवाँ शतक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692