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भगवती सूत्र - ग. ३१ उ. ७-२८ समुच्चय उत्त्पत्ति
जहा ओहिए नीललेस्स उद्देसए | 'सेवं भंते ० ' । ३१-७ ।
भावार्थ- नीललेश्या वाले भवसिद्धिक नैरयिकों के चारों युग्म का कथन औधिक नीललेश्या उद्देशक के अनुसार ॥७॥
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- काउलेस्सा भवसिद्धिया चउसु वि जुम्मेसु तहेव उववाएयव्वा जव ओहिए काउलेस्स उद्देसए । ' सेवं भंते ० ' । ३१-८ ।
भावार्थ- कापोतलेश्या वाले भवसिद्धिक नैरधिक के चारों युग्म का निरूपण औधिक कापोत लेश्या उद्देशक के अनुसार ||८||
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- जहा भवसिद्धिएहिं चत्तारि उद्देगा भणिया एवं अभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्देगा भाणियव्वा जाव काउलेस्सउद्देसओ त्ति । 'सेवं भंते ० ' । ३१ - ९-१२ । भावार्थ - जिस प्रकार भवसिद्धिक के चार उद्देशक कहे हैं, उसी प्रकार अभवसिद्धिक के भी चार उद्देशक, कापोतलेश्या उद्देशक पर्यन्त हैं ॥ ९-१२ ॥
- एवं सम्मदिट्ठीहि वि लेस्सा संजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायव्वा, वरं सम्मदिट्ठी पढमबिएस वि दोसु वि उद्देसएस अहेसत्तमापुढवीए वायव्वो, सेसं तं चैव । ' सेवं भंते ० ' । ३१ - १३-१६ ।
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भावार्थ - इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि के भी लेश्या सहित चार उद्देशक हैं । पहले और दूसरे उद्देशक में सम्यग्दृष्टि का अधः सप्तम नरक पृथ्वी में उपपात नहीं कहना, शेष पूर्ववत् ।।१३ - १६॥
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