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भगवती सूत्र-श. ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति
३० उत्तर-गोयमा ! चोदस कम्मप्पगडीओ वेदेति, तं जहाणाणावरणिज्जं जहा रागिदि यसपसु जाव पुरिसवेयवझं, एवं जाव बायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ।
भावार्थ-३० प्रश्न हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव कर्मप्रकृतियां कितनी वेदते हैं ?
__ ३० उत्तर-हे गौतम ! चौदह कर्म-प्रकृतियां वेदते हैं। यथा-ज्ञाना- . धरणीय आदि एकेन्द्रिय शतक के अनुसार, यावत् पुरुषवेदवध्य कर्म-प्रकृति पर्यन्त । इसी प्रकार यावत् पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक पर्यन्त ।
३१ प्रश्न-एगिंदिया णं भंते ! कओ उववज्जति ? किं रहएहिंतो उववज्जति ?
.३१ उत्तर-जहा वकंतीए पुढविकाइयाणं उववाओ।
भावार्थ-३१ प्रश्न-हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कहां से आ कर उत्पा होते हैं. ?
___ ३१ उत्तर-हे गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद में पृथ्वी. कायिक जीव के समान उपपात कहना चाहिये।
३२ प्रश्न-एगिदियाणं भंते ! कह समुग्धाया पण्णत्ता ?
३२ उत्तर-गोयमा ! चत्तारि समुग्धाया पण्णत्ता, तं जहावेयणासमुग्धाए जाव वेउब्वियसमुग्याए ।
भावार्थ-३२ प्रश्न-हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव के समुद्घात कितने कहे हैं।
३२ उत्तर-हे गौतम ! चार समुद्घात कहे हैं । यथा-वेदना समुद्घात यावत् वैक्रिय समुद्घात।
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