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भगवती सूत्र - ३४ अवान्तर शतक १ उ. ४-१९ विग्रहगति ३७२३
ठाणा पण्णत्ता ?
३ उत्तर - गोयमा ! सहाणेणं असु पुढवीसु एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देस जाव तुल्लटिईय त्ति ।
'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति
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॥ चोत्तीसहमे सए पढमे एगिंदियस
भावार्थ - ३ प्रश्न - हे भगवन् ! परम्परोपपन्नक बादर पृथ्वीकायिक जीव के स्थान कहां कहे हैं ?
३ उत्तर - हे गौतम स्वस्थान की अपेक्षा आठ पृथ्वियों में और इस अभिलाप से प्रथम उद्देशक के अनुसार यावत् तुल्य स्थिति पर्यन्त ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है' - कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
॥ चौतीसवें शतक के प्रथम अवांतर शतक का तीसरा उद्देशक सम्पूर्ण ।।
तईओ उद्देसो समत्तो ॥
अवांतर शतक 9 उद्देशक ४-११
- एवं सेसा वि अट्ट उद्देसगा जाव 'अचरमो' त्ति । णवरं अनंतरा अनंतरसरिसा, परंपरा परं परसरिसा, चरमा य अचरमा य एवं चैव । एवं एए एक्कारस उद्देसगा ।
|| चोत्तीसइमे सए पढमे एगिंदियस ४ - ११ उद्देसा समत्ता || - इसी प्रकार शेष आठ उद्देशक यावत् 'अचरम' पर्यन्त । अनन्तर
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