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३७२८ भगवती सूत्र - श. ३४ अवान्तर शतक ६ विग्रहगति
भवसिद्धिक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्व चरमान्त में मरण - समुद्घात कर के पश्चिम चरमान्त में उत्पन्न हो, तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?
४ उत्तर - हे गौतम ! पूर्ववत्, इस अभिलाप से अधिक उद्देशक के अनुसार लोक के चरमान्त तक कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक में उपपात होता है ।
५ प्रश्न - कहिं णं भंते ! परंपरोववण्णकण्हलेस्सभवसिद्धियपज्जत्तवायरपुढविकाइयाणं ठाणा पण्णत्ता ?
५ उत्तर - एवं एएवं अभिलावेणं जहेब ओहिओ उद्देसओ जाव 'तुल्लट्ठिय' ति । एवं एएणं अभिलावेणं कण्हलेस्स भवसिद्धियएगिदिएहि वि तव एकारसउदेसगसंजुत्तं छटुं सयं ।
॥ चोत्तीसहमे सए छ सयं समत्तं ॥
भावार्थ - ५ प्रश्न - हे भगवन् ! परम्परोपपत्रक कृष्णलेश्या वाले मवसिद्धिक पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक जीव के स्थान कहाँ कहे हैं ?
५ उत्तर - हे गौतम ! पूर्ववत्, इस अभिलाप से तुल्य स्थिति वाले तक औधिक उद्देशक के अनुसार । इसी प्रकार इस अभिलाप से कृष्णलेश्या वाले raffe एकेन्द्रिय के मी ग्यारह उद्देशक सहित छठा अवान्तर शतक जानो । 'हे भगवन् | यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ चौतीसवें शतक का छठा अवान्तर शतक सम्पूर्ण ॥
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