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भगवती गुत्र- ३४ अवान्तर शतक १ उ. १ विग्रहगति
२८ प्रश्न - अपजत्तसु हुमपुढे विकाइयाणं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ ?
२८ उत्तर - गोयमा ! अटु कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ, तं जहा१ णाणावर णिज्जं जाव ८ अंतराइयं । एवं चउक्कणं भेएणं जहेव एगिंदियसासु जाव बायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ।
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भावार्थ - २८ प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव के कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही हैं ?
२८ उत्तर - हे गौतम! आठ कर्म प्रकृतियां कही हैं। यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय । इस प्रकार चार भेदों से एकेन्द्रिय- शतक के अनुसार यावत् पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक पर्यन्त |
२९ प्रश्न - अपजत्तसुमपुढविकाइया णं भंते ! कह कम्मप्पगडीओ बंधंति ?
२९ उत्तर - गोयमा ! सत्तविहबंधगा वि, अद्रविहबंधगा वि. जहा एर्गिदियस एसु जाव पज्जत्ता बायरवणस्सइकाइया |
भावार्थ - २९ प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्म - प्रकृतियाँ बांधते हैं ?
२९ उत्तर - हे गौतम! सात या आठ कर्म प्रकृतियां बांधते हैं इत्यादि एकेन्द्रिय- शतक के अनुसार यावत् पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक पर्यन्त ।
३० प्रश्न - अपज्जत्तसुदुमपुढविकाइया णं भंते ! कह कम्मप्पगडीओ वेदेंति ?
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