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भगवती सूत्र - ३४ अवान्तर शतक १ उ ९ विग्रहगति
१४ प्रश्न - अपजत्तसुमपुढविकाइए णं भंते! अहोलोयखेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए. समोहणित्ता जे भवि उड्ढलोय - खेत्तणाली बाहिरिल्ले खेते अपज्जत्तसुहमपुढ विकाइयत्ताए उववज्जि - तर से णं भंते! कसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा ?
१४ उत्तर - गोयमा ! तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा ।
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प्रश्न-से केणटुणं भंते! एवं बुचड़ - 'तिसमइएण वा चउसमइएन वा विग्गणं उववज्जेज्जा ?'
उत्तर - गोयमा ! अपज्जत्तसुहुम पुढविकाइए णं अहोलोयखेत्तणाली बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तणालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए एगपयरंमि अणुसेढी उववज्जित्तए से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, जे भवि विसेटीए उववज्जित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, से तेणणं जाव उववज्जेज्जा । एवं पज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए वि, एवं जाव पज्जत्तसुहुमते उका इयत्ताए ।
भावार्थ - १४ प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव, अधोलोक की साड़ी के बाहर के क्षेत्र में मरण - समुद्घात कर के ऊर्ध्वलोक की नाड़ी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकपने उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? १४ उत्तर - हे गौतम ! वह तीन या चार समय की विग्रहगति से
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