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भगवती सूत्र श. ३३ अवान्तर शतके १
१० उत्तर - हे गौतम! पूर्ववत् । इसी प्रकार सभी एकेन्द्रिय जीवों के विषय में दण्डक कहना चाहिये । यावत्
११ प्रश्न - पज्जत्तबायरवणस्सइकाइया णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ बंधति ?
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११ उत्तर - एवं चैव ।
भावार्थ - ११ प्रश्न - हे भगवन् ! पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीव कितनी कर्म - प्रकृतियाँ बाँधते हैं ?
११ उत्तर - हे गौतम! पूर्ववत् ।
१२ प्रश्न - अपज्जत्तसुमपुढविकाइया णं भंते! कड़ कम्मप्पगडीओ वेदेंति ?
१२ उत्तर - गोयमा ! चोद्दस कम्मप्पगडीओ वेदेति तं जहाणाणावर णिज्जं जाव अंतराइयं, सोइंदियवज्झं, चक्खिदियवज्झं, घार्णिदियवज्झं, जिभिदियवज्झ, इत्थिवेयवज्यं, पुरिसवेयवज्यं । एवं चक्कणं भेएणं जाव
भावार्थ - १२ प्रश्न - हे भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जींव कितनी कर्मप्रकृतियां वेदते हैं ?
१२ उत्तर - हे गौतम! वे चौदह कर्म-प्रकृतियां वेदते हैं। यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय, ९ श्रोतेन्द्रियवध्य ( श्रोते न्द्रियावरण) १० चक्षुरिन्द्रियare ( चक्षुरिन्द्रियावरण) ११ घ्राणेन्द्रियवध्य १२ जिव्हेन्द्रियवध्य १३ स्त्रीdaaru और १४ पुरुषवेदवध्य । इस प्रकार सूक्ष्म, बावर, पर्याप्त और अपर्याप्त के चार मेव पूर्वक पर्याप्त बावर वनस्पतिकायिक पर्यन्त यावत्
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