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भगवती सूत्र - श. ३३ अवान्तर शतक १
जीव के कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही हैं ?
२ उत्तर - हे गौतम ! इसी प्रकार इस अभिलाप से औधिक उद्देशक के अनुसार, यावत् चौदह कर्म- प्रकृतियाँ वेदते हैं । ३३-३ ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'-- कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
उद्देशक ४-११
- अनंतरोगाढा जहा अणंतरोववण्णगा । ३३ -४ ।
- परंपरोगाढा जहा परंपरोववण्णगा । ३३ - ५ । - अतिराहारगा जहा अनंतरोववण्णगा । ३३ -६ ।
- परंपराहारगा जहा परंपरोववण्णगा । ३३ -- ७ । - अनंतरपजत्तगा जहा अतरोववण्णगा । ३३-८ । - परंपरपजत्तगा जहा परंपरोववणगा । ३३ - ९ । - चरिमा वि जहा परंपरोववण्णगा तहेव । ३३.१० । - एवं अचरिमा वि११ | एवं एए एकारस उद्देगा । * 'सेव भंते ! सेवं भंते !' त्ति जाव विहरइ || पढमं एगिंदियसयं समत्तं ॥
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-- अनन्तरोपपन्नक के समान अनन्तरावगाढ़ भी । ३३-४ । - परम्परोपपन्नक के समान परम्परावगाढ़ भी । ३३-५ । - अनन्तरोपपन्नक के समान अनन्तराहारक भी । ३३-६ । - परम्परोपपत्रक के समान परम्पराहारक भी । ३३-७ ।
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