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________________ ३६७० भगवती सूत्र - श. ३३ अवान्तर शतक १ जीव के कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही हैं ? २ उत्तर - हे गौतम ! इसी प्रकार इस अभिलाप से औधिक उद्देशक के अनुसार, यावत् चौदह कर्म- प्रकृतियाँ वेदते हैं । ३३-३ । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'-- कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । उद्देशक ४-११ - अनंतरोगाढा जहा अणंतरोववण्णगा । ३३ -४ । - परंपरोगाढा जहा परंपरोववण्णगा । ३३ - ५ । - अतिराहारगा जहा अनंतरोववण्णगा । ३३ -६ । - परंपराहारगा जहा परंपरोववण्णगा । ३३ -- ७ । - अनंतरपजत्तगा जहा अतरोववण्णगा । ३३-८ । - परंपरपजत्तगा जहा परंपरोववणगा । ३३ - ९ । - चरिमा वि जहा परंपरोववण्णगा तहेव । ३३.१० । - एवं अचरिमा वि११ | एवं एए एकारस उद्देगा । * 'सेव भंते ! सेवं भंते !' त्ति जाव विहरइ || पढमं एगिंदियसयं समत्तं ॥ Jain Education International -- अनन्तरोपपन्नक के समान अनन्तरावगाढ़ भी । ३३-४ । - परम्परोपपन्नक के समान परम्परावगाढ़ भी । ३३-५ । - अनन्तरोपपन्नक के समान अनन्तराहारक भी । ३३-६ । - परम्परोपपत्रक के समान परम्पराहारक भी । ३३-७ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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