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________________ भगवती सूत्र-श. ३३ अवान्तर शतक १ ६ उत्तर-हे गौतम ! चौदह कर्म प्रकृतियां वेदते हैं । यथा-ज्ञानावरणीय यावत् पुरुष वेद-वध्य (पुरुषवेदावरण)। इसी प्रकार यावत् अनन्तरोपपन्नक बावर वनस्पतिकायिक पर्यन्त । ३३-२ । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। - उद्देशक ३ १ प्रश्न-कइविह्य णं भंते ! परंपरोववण्णगा एगिदिया पण्णता ? १ उत्तर-गोयमा ! पंचविहा परंपरोक्वण्णगा एगिंदिया पण्णत्ता, तं जहा पुढविकाइया-एवं चउकओ भेओ जहा ओहिउद्देसए । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? -१ उत्तर--हे गौतम ! पांच प्रकार के कहे हैं। यथा--पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । इसी प्रकार औधिक उद्देशक के अनुसार प्रत्येक के चार-चार भेद कहने चाहिये। २ प्रश्न-परंपरोववण्णगअपजत्तसुहुमपुढविकाइयाणं भंते ! कह कम्मप्पगडीओ पण्णत्ताओ? २ उत्तर-एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसए तहेव गिरवसेसं भाणियब्वं जाव 'चउद्दस वेदेति' । 'सेवं भंते.' ति । ३३.३ । भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! परम्परोपपन्नक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वोकायिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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