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भगवती मूत्र-श. ३१ उ. ७-२८ ममुच्चय उत्पत्ति
-मिच्छादिट्टीहि वि चत्तारि उद्देसगा काय वा जहा भवसिद्धियाणं । 'सेवं भंते० '। ३१-१७-२० । भावार्थ-भवसिद्धिक के समान मिथ्यादृष्टि के भी चार उद्देशक हैं।
_ ।१७-२०। -एवं कण्हपक्खिएहि वि लेस्सासंजुत्तेहिं चत्तारि उद्देसगा कायवा जहेव भवसिद्धि एहिं । 'सेवं भंते० । ३१-२१-२४।
भावार्थ-इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक के लेश्या सहित चार उद्देशक भी. भवसिद्धिक के समान है । २१-२४ ।
-सुक्कपक्खिपहिं एवं चेव चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा । जाव वालुयप्पभापुढविकाउलेस्ससुक्कपक्खियखुड्डागकलिओगणेरहया णं भंते ! कओ उववज्जति ? तहेब जाव णो परप्पओगेणं उववज्जंति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति । सव्वे वि एए अट्ठावीसं उद्देसगा।
।३१-२५-२८ । ॥ इकतीसइमे सए ७-२८ उद्देसगा समत्ता ॥
॥ इक्कतीसइमं उक्वायसयं समत्तं ॥ भावार्थ-इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक के भी लेश्या सहित चार उद्देशक हैं। यावत् हे भगवन् ! वालुकाप्रभा पृथ्वी के कापोतलेश्या वाले शुक्लपाक्षिक क्षुवकल्योज राशि प्रमाण नैरयिक कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ? उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । यावत् वे पर-प्रयोग से उत्पन्न नहीं होते।
। २५-२८॥
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