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भगवती सूत्र-श. ३० उ. १ ममवसरण
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२७ उत्तर-एवं जं जं पयं अत्थि पुढविकाइयाणं नहिं नहिं मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु एवं चेव दुविहं आउयं पकरेंति । णवरं तेउलेस्साए ण किं पि पकरेंति। एवं आउकाइयाण वि, एवं वणम्सइ. काइयाण वि । तेउकाइया वाउकाइया सव्वट्ठाणेसु मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसुणोणेग्इयाउयं पकाति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, णो मणुस्साउयं०, णो देवाउयं पकरेंति । बेइंदिय तेइंदिय चरिंदियाणं जहा पुढविकाइयाणं । णवरं सम्मत्त-णाणेसु ण एक्कं पि आउयं पकति ।
भावार्थ-२७ प्रश्न-हे भगवन् ! सलेशी अक्रियावादी पृथ्वीकायिक जीव, नरयिक का आयु बांधते हैं ?
२७ उत्तर-हे गौतम ! जो-जो पद पश्वीकायिक जीव में होते हैं, उन सभी में अक्रियावादी और अज्ञानवादी, इन दो समवसरण में पूर्व कथनानसार मनुष्य और तियंच, दो प्रकार का आयु बांधते हैं, परन्तु तेजोलेश्या में तो किसी भी आयु का बन्ध नहीं करते। इसी प्रकार अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों के भी जानना चाहिये । तेजस्काय और वायुकाय के सभी स्थानों में अक्रियावादी और अज्ञानबादी, ऐसे दो समवसरण में नरयिक, मनुष्य और देव का आयु नहीं बांधते, एकमात्र तियंच का आयु बांधते हैं। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चौरिन्द्रिय जीव का निरूपण पृथ्वीकायिक के तुल्य है, परन्तु सम्यक्त्व और ज्ञान में वे किसी भी आयु का बन्ध नहीं करते ।
___२८ प्रश्न-किरियावाई णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया किं णेरड्याउयं पकरेंति-पुच्छा।
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