________________
भगवती गूग-श. ३० उ. ३ परम्परोपपत्रक क्रियावादी०,
३६३७
शेष जीव भव्य और अमव्य दोनों प्रकार के हाते हैं । अलेगी, सम्यग्दृष्टि, ज्ञानी, अवेदी, अकषायी और अयोगी, ये भी भव्य ही होते हैं । इनका समावेश क्रियावादी में हो गया है। इसलिये यहां इनका पृथक् निर्देश नहीं किया है।
॥ तीसवें शतक का दूसरा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक ३० उद्देशक ३
परम्परोपपन्नक क्रियावादी
१ प्रश्न-परंपरोववण्णगा णं भंते ! णेरइया किरियावाई० ?
१ उत्तर-एवं जहेव ओहिओ उद्देसओ तहेव परंपरोक्वण्णएसु वि णेरहयाईओ तहेव गिरवसेसं भाणियव्वं, तहेव तियदंडगसंगहिओ। * 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति जाव विहरइ
॥ तीसइमे सए तईओ उद्देसो समत्तो ॥
कठिन शब्दार्थ-तियदंडगसंगहिओ-त्रिदण्डकसंगृहीत-तीन दण्डकों से युक्त । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! परम्परोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं.?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org