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शतक २८ उद्देशक ३-११
१-एवं पएणं कमेणं जहेब बंधिसए उद्देसगाणं परिवाडी तहेव इहं पि अट्ठसु मंगेसु णेयव्वा । णवरं जाणियध्वं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं जाव अचरिमुद्देसो । सव्वे वि एए एकारस उद्देसगा।
8 'सेवं भंते ! मेवं भंते !' सि जाच विहरइ ® ॥ अट्ठावीमइमे सए ३-११ उद्देसगा समत्ता ॥
। अट्ठावीसइमं कम्मसमजणसयं समत्तं ॥ भावार्थ-इसी क्रम से, जिस प्रकार बन्धी शतक में उद्देशकों की परिपाटी कही है, उसी प्रकार यहाँ भी आठों ही मंगों में जाननी चाहिये । परन्तु जिसमें जो बोल संभावित हों, वे ही बोल कहना चाहिये, यावत् अचरम उद्देशक पर्यन्त । ये सभी ग्यारह उद्देशक है।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'-- कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
॥ अट्ठाईसवें शतक का ३-११ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
॥ अट्ठाईसवां शतक सम्पूर्ण ॥
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