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भगवती सूत्र-श. ३० उ १ समवसरण
जीवों के समान हैं । अज्ञानी यावत् विमंगज्ञानी जेव, कृष्णपाक्षिक जीवों के समान है । आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त जीव, मलेशी जीवों के समान है। नोसंज्ञोपयुक्त जीव, अलेशी जीवों के तुल्य है । सवेदक यावत् नपुंसकवेदक जीव, सलेशी जीव सदश है। अवेदक जीव अलेशी जीवों के अनुरूप है। सकषायी यावत् लोभकषायी जीव, सलेशी जीवों के तुल्य है। अकषायी जीवों का वर्णन अलेशी जीवों के अनुरूप है। सयोगी यावत् काययोगी जीव, सलेशी जीवों के समान हैं। अयोगी जीव, अलेशी जीवों के तुल्य है। साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव, सलेशी जीव के सदृश है।
७ प्रश्न-णेरइया णं भंते ! किं किरियावाई-पुच्छा। ७ उत्तर-गोयमा ! किरियावाई वि जाव वेणइयवाई वि । भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक क्रियावादी हैं ? ७ उत्तर-हे गौतम ! क्रियावादी यावत् विनयवादी भी हैं। ८ प्रश्र-सलेस्सा णं भंते ! णेरइया कि किरियावाई-? . ...८ उत्तर-एवं चेव । एवं जाव काउलेस्सा। कण्हपक्खिया किरियाविवजिया। एवं एएणं कमेणं जच्चेव जीवाणं वत्तव्वया सच्चेव
रइयाणं वत्तव्वया वि जाव अणागारोवउत्ता । णवरं जं अस्थि तं भाणियव्यं, सेसं ण भण्णइ । जहा णेरइया एवं जाव थणियकुमारा। . भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! सलेशी नैरयिक क्रियावादी हैं ?
८ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् यावत् कापोतलेशी नरयिक पर्यन्त। कृष्णपाक्षिक नरयिक क्रियावादी नहीं हैं, इसी प्रकार और इसी क्रम से जीवों की वक्तव्यता नैरयिकों के विषय में यावत् अनाकारोपयुक्त पर्यन्त । किन्तु वही कहना
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