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भगवती मूत्र-श. २५ उ. ७ विनय तप
भावार्थ-१२४ प्रश्न-हे भगवन् ! आभ्यन्तर तप कितने प्रकार का है ?
१२४ उत्तर-हे गौतप ! आभ्यन्तर तप छह प्रकार का है । यथाप्रायश्चित्त, विनय, यावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग।
विवेचन--जिस तप का सम्बन्ध आत्मा के भावों के साथ हो, उसे 'आभ्यन्तर तप' कहते हैं।
१२५ प्रश्न-से किं तं पायच्छित्ते ?
१२५ उत्तर-पायच्छित्ते दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-आलोयणा. रिहे जाव पारंचियारिहे । सेत्तं पायच्छित्ते।
भावार्थ-१२५ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रायश्चित्त कितने प्रकार का है ?
१२५ उत्तर-हे गौतम ! प्रायश्चित्त दस प्रकार का है । यथा-आलो. चनाह, यावत् पारांचिकाह । यह प्रायश्चित्त तप हुआ।
विवेचन-प्रायश्चित्त-मूलगुण और उत्तरगुण विषयक अतिचारों से मलीन हुई आत्मा जिस अनुष्ठान से शुद्ध हो, उसे 'प्रायश्चित्त' कहते हैं, अथवा 'प्रायः' का अर्थ है-'पाप'
और 'चित्त' का अर्थ है 'शुद्धि' । जिस अनुष्ठान से पाप की शुद्धि हो, उसे 'प्रायश्चित्त' कहते हैं। प्रायश्चित्त के ५० भेद इस प्रकार हैं-आलोचनाह, प्रतिक्रमणाई आदि दस प्रकार का प्रायश्चित्त । प्रायश्चित्त देने वाले के आचारवान् आधारवान् आदि दस गण, प्रायश्चित्त लेने वाले के जाति सम्पन्न, कुल सम्पन्न आदि दस गुण, आकम्पयित्ता (आकम्प्य) अणमाणइत्ता (अनुमान्य ) आदि आलोचना के दस दोष, दर्प, प्रमाद आदि प्रायश्चित्त सेवन करने के दस कारण । ये सभी मिला कर प्रायश्चित्त के ५० भेद होते हैं।
विनय तप १२६ प्रश्न-से किं तं विणए ? ।
१२६ उत्तर-विणए सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ णाणविणए २. दसणविणए ३ चरित्तविणए ४ मणविणए ५ वइविणए,
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