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भगवती सूत्र - श. २५ उ. १२ मियादृष्टि जीवों की उत्पत्ति
१ उत्तर - गोयमा ! से जहाणामए पवए पवमाणे - अवसेसं तं चैव, एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणिया ।
* 'मेवं मंते ! सेवं भंते !' त्ति
|| पणवीस से सर एक्कारसमो उद्देमो समत्तो ||
भावार्थ- १ प्रश्न- हे भगवन् ! समदृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं? १ उत्तर - हे गौतम! कूदने वाले पुरुष के समान पूर्ववत् । एकेन्द्रिय छोड़ कर यावत् वैमानिक पर्यन्त ।
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'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन ! यह इसी प्रकार हैंकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन - यहाँ सगदृष्टि के उत्पन्न होने का वर्णन है । एकेन्द्रिय जीव मिध्यादृष्टि ही होते हैं। इसलिये यहाँ एकेन्द्रियों को वर्जित किया है।
॥ पच्चीसवें शतक का ग्यारहवाँ उद्देशक सम्पूर्ण |
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शतक २५ उद्देशक १२
मिथ्याद्दष्टि जीवों की उत्पत्ति
१ प्रश्न - मिच्छदिट्टिणेरड्या णं भंते ! कहं उववज्जंति ?
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