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.... भगवती सूत्र-श"३६ उ. १ नरयिक के पाप-बन्ध
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... २५ उत्तर-हे गौतम ! बांधा था, नहीं बांधता है और बांधेगा। यह एक भंग पाया जाता है । शेष सभी स्थानों में चार भंग होते हैं। इसी प्रकार अपकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में भी । तेउकायिक और वायकायिक जीवों के सभी स्थानों पहला और तीसरा भंग होता है। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय
और चौरिन्द्रिय जीवों में सभी स्थानों में पहला और तीसरा भंग होता है। किन्तु सम्यक्त्व, ज्ञान, आमिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान में एक तीसरा • भंग ही होता है। पंचेन्द्रिय तियंच-योनिक में कृष्णपाक्षिक में पहला और तीसरा भंग, सम्यमिथ्यात्व में तीसरा और चौथा भंग, सम्यक्त्व, ज्ञान, आमिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान-इन पांच पदों में दूसरे भंग के अतिरिक्त शेष तीन भंग होते हैं। शेष सभी पदों में चारों भंग होते हैं । मनष्य, औधिक जीव के समान, परन्तु सम्यक्त्व, औधिक (सामान्य) ज्ञान, आभिनि बोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान, इन सभी पदों में दूसरे भंग के अतिरिक्त शेष तीन भंग कहने चाहिये। शेष पूर्ववत् । वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक, असुरकुमार के समान है। नामकर्म, गोत्रकर्म और अन्तरायकर्म, जानवरणीयकर्म के सदश है।
'हे भगवन ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत विचरते हैं। ....
विवेचन-आय-कर्म बांधने के विषय में चार भंग बताये हैं। उनमें पहला भंग अभव्य जीव की अपेक्षा है । जो जीव चरमशरीरी होगा, उसकी अपेक्षा दूसरा भंग है। तीसरा भंग उपशमक की अपेक्षा है, क्योंकि उसने पहले आयु बांधा था वर्तमान काल में-उपशम अवस्था में आयु नहीं बांधता ओर उपशम अवस्था से गिरने पर फिर आयु बाधेगा। चौथा भंग क्षपक की अपेक्षा है । उसने भूतकाल में (जन्मान्तर में) आयु बांधा था, वर्तमान में नहीं बांधता और भविष्यत्काल में भी नहीं बांधेगा।
सलेशी यावत् शुक्ललेशी जीवों में चार भंग बताये हैं। उनमें से जो निर्वाण को प्राप्त नहीं होगा, उसकी अपेक्षा पहला भंग है । जो चरमशरीरी रूप से उत्पन्न होगा, उसकी अपेक्षा दूसरा भंग है। अबन्ध समय की अपेक्षा तीसरा भंग है और जो चरमशरीरी है उसकी अपेक्षा चौथा भंग है । इस प्रकार अन्यत्र भी घटित करना चाहिए ।
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