________________
भगाती गुम-श. २६ उ. १ रयिक के पाप-बन्ध
३५६५
भावाथ-२३ प्रश्न-हे भगवन ! मनःपर्यवज्ञानी जीव ने आय-कर्म बांधा था.?
२३ उत्तर-हे गौतम ! किसी मनःपर्यवज्ञानी ने आयु-कर्म बांधा था, बांधता है और बांधेगा। किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है, बांधेगा। किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। ये तीन भंग पाये आते हैं। केवलज्ञानी में एक चौथा भंग ही होता है । इसी प्रकार क्रमशः नोसंशोपयुक्त जीव में, दूसरे मंग के अतिरिक्त तीन भंग, मन:पर्यवज्ञानी के समान होते है । अवेदक और अकषायी जीवों में सम्यगमिथ्यादृष्टि के समान तीसरा और चौथा भंग होता है। अयोगी में एक अन्तिम भंग होता है । शेष सभी पदों में यावत् अनाकारोपयुक्त तक चारों भंग होते हैं।
____ २४ प्रश्न-णेग्इए णं भंते ! आउयं कम्मं किं बंधो-पुच्छा।
२४ उत्तर-गोयमा ! अत्यंगइए चत्तारि भंगा, एवं सब्वत्थ वि णेरइयाणं चत्तारि भंगा. णवरं कण्डलेस्से कण्हपक्खि य पढम-तइया भंगा, सम्मामिच्छत्ते तइय-चउत्था । असुरकुमारे एवं चेव, णवरं कण्ह. लेस्से वि चत्तारि भंगा भाणियब्बा, सेसं जहा गैरइयाणं, एवं जाव थणिगकुमागणं । पुढविकाइयाणं सव्वस्थ वि चत्तारि भंगा, णवरं कण्हपरिखए पढम तहगा भंगा।
भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीव ने आय-कर्म बांधा था.? - २४ उत्तर-हे गौतम ! किसी नैरयिक जीव ने बांधा था इत्यादि चार भंग । इस प्रकार सभी स्थानों में नैरपिक के चार भंग कहना चाहिये । परन्तु कृष्णलेशी और कृष्णपाक्षिक में पहला और तीसरा भंग तथा सम्यगमिथ्यादृष्टि में तीसरा और चौथा भंग होता है । इसी प्रकार असुरकुमार में भी, किन्तु कृष्णलेशी में चार भंग कहने चाहिये । शेष सभी नरयिक के समान ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org