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भगवती सूत्र-श. २६ उ १ जीव ने कर्म का बन्ध किया, करता है, करेगा ? ३५५३
गाणीणं चत्तारि भंगा, केवलणाणीणं चरमो भंगो जहा अले. स्साणं (५)। अण्णाणीणं पढम-बिइया, एवं मइअण्णाणीणं, सुय. अण्णाणणं विभंगणाणीणं वि (६)।
भावार्थ-८-ज्ञानी जीवों में चार भंग, आभिनिबोधिक ज्ञानी यावत् मनःपर्यव ज्ञानी में चार भंग, केवलज्ञानी जीवों में अन्तिम एक भंग अलेशी जीवों के समान पाया जाता है। अज्ञानी जीवों में पहला और दूसरा भंग, इसी प्रकार मतिअज्ञानी, श्रुतअज्ञानी और विभंगज्ञानी में भी पहला और दूसरा भंग पाया जाता है।
९-आहारसण्णोवउत्ताणं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ताणं पढमबिइया, णोसण्णोवउत्ताणं चत्तारि (७)।
भावार्थ-९-आहारसंज्ञोपयुक्त यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त जीवों में पहला और दूसरा और नोसंजोपयुक्त जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं। ____१०-सवेयगाणं पढम-बिइया । एवं इत्थीवेयगा, पुरिसवेयगा, णपुंसगवेयगा वि । अवेयगाणं चत्तारि (८)।
___ भावार्थ-१०-मवेदक जीवों में पहला और दूसरा भंग इसी प्रकार स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक तथा नपुंसकवेदक में भी पहला और दूसरा भंग पाये जाते है। अवेदक में चारों भंग पाये जाते हैं।
११-सकसायीणं चत्तारि, कोहकसायीणं पढम-विहया भंगा, एवं माणकसाइयस्स वि, मायाकसाइयस्स वि । लोभकसाइयस्स चत्तारि भंगा।
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