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भगवती सूत्र श. २६ उ १ नैरयिक के पाप-बन्ध
गिम्मि य चरिमो, मेमेगु पढम-विइया ।
कठिन शब्दार्थ--विहूणा--विहीन-- रहित । भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव ने वेदनीय कर्म बांधा था ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! १ किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और बांधेगा। २ किसी जीव ने बांधा था, बांधता है और नहीं बांधेगा। ४ किसी जीव ने बांधा था, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा। ये तीन भंग पाये जाते हैं। इसी प्रकार सलेशी जीव में तीसरे भंग को छोड़ कर शेष तीन भंग पाये जाते हैं। कृष्णलेशी यावत् पद्मलेशी जीवों में पहला और दूसरा भंग पाया जाता है। शुक्ललेशी जीवों में तीसरे भंग के अतिरिक्त तीन भंग पाये जाते हैं। अलेशी में चौथा भंग होता है। कृष्णपाक्षिक जीवों में पहला और दूसरा मंग तथा शुक्लपाक्षिक में तीसरे के अतिरिक्त तीन भंग पाये जाते हैं । इसी प्रकार सम्यगदष्टि में भी तीन भंग होते हैं। मिथ्यादृष्टि और सम्यगमिथ्यादृष्टि जीवों में पहला और दूसरा भंग होता है । ज्ञानी जीवों में तोमरे के अतिरिक्त तीन भंग होते हैं । आभिनिबोधिकज्ञानी यावत् मनः पर्यवज्ञानी जीवों में पहला और दूसरा भंग तथा केवलज्ञानी में तीसरे के अतिरिक्त तीन भंग होते हैं। इसी प्रकार नोसंजोपयुक्त, अवेदक, अकषायी, साकारोपयुक्त और अना. कारोपयुक्त, इन सभी में तीसरे के अतिरिक्त तीन भंग होते हैं। प्रयोगी में एक चौथा भंग होता है। शेष सभी में पहला और दूसरा भंग ही होता है ।
१८ प्रश्न-णेरइए णं भंते ! वेयणिज्ज कम्मं बंधी बंधइ-? - १८ उत्तर-एवं गैरइया जाव वेगाणिय त्ति । जस्स जं अस्थि सव्वत्थ वि पढम-बिड्या, णवरं मणुस्मे जहा जीवे ।
भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीव ने वेदनीय कर्म बांधा ? १८ उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् । नरयिक से ले कर यावन वैमानिक तक
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