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३५५४ भगवती सूत्र-श. २६ उ १ जीव ने कर्म का बन्ध किया, करता है, करेगा?
. भावार्थ-११-सकषायी जीवों में चार मंग, क्रोधकषायी जीवों में पहला और दूसरा भंग और इसी प्रकार मानकषायी तथा मायाकषायी जीवों में भी ये दो भंग पाये जाते हैं। लोभकषायी जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं।
१२ प्रश्न-अकसायी णं भंते ! जीवे पावं कम्मं किं बंधीपुच्छा । ____१२ उत्तर-गोयमा ! अत्थेगइए बंधी ण बंधइ बंधिस्सइ ३, अत्थेगइए बंधी ण बंधइ ण बंधिस्सइ ४ (९)।
भावार्थ-१२ प्रश्न-हे भगवन ! अकषायी जीव ने पापकर्म बांधा था.?
१२ उत्तर-हे गौतम ! किसी जीव ने बांधा था, अभी नहीं बांधता है कित भविष्य में बांधेगा और किसी जीव ने बांधा था, अभी नहीं बांधता है और आगे भी नहीं बांधेगा। ..
__१३-सजोगिस्स चउभंगो, एवं मणजोगिस्स वि वयजोगिस्स वि कायजोगिस्स वि। अजोगिस्स चरिमो (१०)। सागागेवउत्ते चत्तारि, अणगारोवउत्ते वि चत्तारि भंगा (११)।
भावार्थ-१३-सयोगी जीवों में चार भंग। इसी प्रकार मनयोगी, वचनयोगो और काययोगी जीवों में भी चार भंग पाये जाते हैं । अयोगी जीवों में अन्तिम एक भंग पाया जाता है। साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीवों में चारों भंग पाये जाते हैं। . विवेचन-उपरोक्त सूत्र में जीव, लेण्या आदि ग्यारह स्थानों में बन्ध का कथन किया गया। इनमें से पहले 'उद्देशक में अनन्तरोपपन्नक, परम्परोपपत्रक आदि विशेषण रहित सामान्य जीव की अपेक्षा ग्यारह द्वारों से बन्ध वक्तव्यता का कथन किया है । 'जीव ने
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