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भगवती मूत्र-ग. २५ उ. ८ जीवों के उत्पन्न होने का उदाहरण
२ गणव्युत्सर्ग-अपने गण (गन्छ ) का त्याग कर के 'जिनकल्प' स्वीकार करना । ३ उपधि व्युत्सर्ग--किमी कल्प विशेप में उपधि का त्याग करना। ४ भक्त-पान व्युत्सर्ग--संदोष आहार-पानी का त्याग करना। भाव व्यत्सर्ग के तीन भेद हैं । यथा-- १ कषाय व्युत्सर्ग--कषाय का त्याग करना । इसके क्रोधादि नार भेद हैं। २ संसार व्युत्सर्ग-नरक आदि आयु बंध के कारण मिथ्यात्व आदि का त्याग करना। ३ कर्म व्युत्सर्ग-कर्मबन्ध के कारणों का त्याग करना ।
कहीं-कहीं भाव व्युत्सर्ग के चार भेद बताये हैं । वहाँ चौथा भेद योग व्युत्मर्ग' बताया है । योगों का त्याग करना-योग व्युत्सर्ग है। इसके तीन भेद हैं । मनयोग व्युत्सर्ग,' वचनयोग व्युत्सर्ग और काययोग व्युत्सर्ग । ये व्युत्सर्ग तप के भेद हुए। .
__ आभ्यन्तर तप मोक्ष प्राप्ति में अन्तरंग कारण है । अन्तर्दृष्टि आत्मा ही इनका सेवन करता हैं और वही इन्हें तप रूप से मानता है । इसका प्रभाव बाह्य शरीर पर नहीं पड़ता, किन्तु आभ्यन्तर राग-द्वेष कषाय आदि पर पड़ता है ।
॥ पच्चीसवें शतक का सातवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक २५ उद्देशक ८
जीवों के उत्पन्न होने का उदाहरण
१ प्रश्न-रायगिहे जाव एवं वयासी-णेरइया णं भंते ! कह उववज्जति ?
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