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- भगवती सूत्र-श. २५ उ. ७ रौद्र ध्यान
पुरुषों के चित्त में तो सदा मोक्ष की ही लगन लगी रहती है । यह चार प्रकार का आर्त्तध्यान संसार को बढ़ाने वाला और सामान्यतः तिर्यंच गति में ले जाने वाला होता है।
आत्तं ध्यान के चार लक्षण (लिंग) कहे हैं । यथा-१ क्रन्दनता-ऊँचे स्वर मे रोना और चिल्लाना २ शोननता-दीनता के भाव युक्त हो, आँखों में आँसू भर आना ३ तेपनता-टपटप आंसू गिराना और ४ परिदेवनता-बार-बार क्लिष्ट भाषण करना, विलाप करना।
इष्ट वियोग, अनिष्ट मंयोग और वेदना के निमित्त से ये उपर्युक्त चार लक्षण आर्तध्यानी के होते हैं।
रौद्र ध्यान
१४६-द्दे झाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ हिंसाणुबंधी २ मोसाणुबंधी ३ तेयाणुबंधी ४ सारक्खणाणुबंधी। रोहस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-१ ओस्सण्णदोसे, २ बहुलदोसे ३ अण्णाणदोसे ४ आमरणांतदोसे ।
भावार्थ-१४६ रौद्र ध्यान तार प्रकार का है। यथा-१ हिंसानुबन्धी २ मषानुबन्धी ३ स्तेयानुबन्धी और ४ संरक्षणानुबन्धी।
रौद्र ध्यान के चार लक्षण कहे हैं । यथा-१ ओसन्न दोष २ बहुल दोष ३ अज्ञान दोष और ४ आमरणान्त दोष ।
विवेचन-रौद्र ध्यान-हिंसा, झूठ और चोरी में तथा धन आदि की रक्षा में मन को जोड़ना 'रौद्र ध्यान' है । अथवा हिंसा आदि का अतिक्रूर परिणाम 'रौद्र ध्यान' है।
· अथवा हिंसा में प्रवृत्त आत्मा द्वारा प्राणियों को रुलाने वाले व्यापार का चिन्तन करना 'रौद्र ध्यान' है।
अथवा छेदना, भेदना, काटना, मारना, वध करना, प्रहार करना, दमन करना इत्यादि कार्यों में जो राग करता है और जिसमें अनुकम्पा भाव नहीं है, उस पुरुष का ध्यान 'रौद्र ध्यान' कहलाता है । इसके चार भेद हैं । यथा--
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