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भगवती सूत्र-श २५ उ ७ अनशन तप
३५०३
आवकहिए । सत्तं अणसणे।
भावार्थ-१०९ प्रश्न-हे भगवन् ! भक्त प्रत्याख्यान के कितने भेद है ?
१०९ उत्तर-हे गौतम ! भक्त प्रत्याख्यान दो प्रकार का है । यथानिर्हारिम और अनिर्झरिम । ये दोनों नियम से सप्रतिकर्म होते है । यह भक्त प्रत्याख्यान हुआ। यह यावत्कथिक अनशन और अनशन का कथन पूर्ण हुआ।
विवेचन-१ अनशन-आहार का त्याग करना। इसके दो भेद हैं-इत्वरिक अनशन और यावत्कथिक अनशन । इत्वर का अर्थ है-अल्प काल । अल्प काल के लिए किये जाने वाले अनशन को 'इत्वरिक अनशन' कहते हैं। प्रथम तीर्थंकर के शासन में एक वर्ष, मध्य के बाईस तीर्थंकरों के शासन में आठ मास और अन्तिम तीर्थंकर के शासन में छह मास तक का उत्कृष्ट इत्वरिक अनशन होता है । इसके चतुर्थ-भक्त, षष्ठ-भक्त आदि अनेक भेद हैं। 'चतुर्थ-भक्त' को 'उपवास' भी कहते हैं । जैसा कि कहा है
'चतुर्थ भक्तं यावद्भक्तं त्यज्यते यत्र सच्चतुर्थ इयं च - उपवासस्य संज्ञा, एवं षष्ठादिकमुपवासद्वयादेरिति । चतुर्थमेकेनोपवासेन, षष्ठं द्वाभ्यां. अष्टमं त्रिमिः।
- अर्थात्-'चतुर्थ-भक्त' यह उपवास की संज्ञा है अर्थात् चतुर्थ-भक्त का तात्पर्य एक उपवास है । षष्ठ-मक्त का अर्थ 'दो उपवास' और अष्टम-भक्त का अर्थ 'तीन उपवास' है। इसी प्रकार आगे भी समझना चाहिये ।
यावत्कथिक अनशन के दो भेद हैं । यथा-पादपोपगमन और भवतप्रत्याख्यान । अशन, पान, खादिम और स्वादिम रूप चारों प्रकार के आहार का त्याग कर के अपने शरीर के किसी भी अंग को किंचितमात्र भी नहीं हिलाते हुए, निश्चल रूप से संथारा करना 'पादपोपगमन' कहलाता है । 'पादप' का अर्थ है-'वृक्ष' । जिस प्रकार कटा हुआ वृक्ष अथवा वृक्ष की कटी हुई डाली स्वयं हिलती नहीं, उसी प्रकार संथारा कर के जिस स्थान पर, जिस रूप में एक बार लेट जाय, फिर उसी स्थान, उसी रूप में लेटे रहना और इसी प्रकार मृत्यु हो जाना 'पादपोपगमन मरण' है । इसमें हाथ-पांव हिलाने का भी आगार नहीं होता।
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