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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ सराग- वीतराग
वणियसंजए वि । परिहारविसुद्धियसंजओ जहा पुलाओ । सुहुमसंपरायसंजओ अहम्खायसंजओ य जहा नियंठो (२) ।
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भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत, सवेदी होते हैं या
अवेदो ?
७ उत्तर - हे गौतम! सवेदी भी होते हैं और अवेदी भी । यदि सवेदी होते हैं आदि सभी कथन 'कषाय-कुशील' के समान है । इसी प्रकार छेदोपस्थापसयत भी । परिहारविशुद्धिक संयत पुलाक के समान है । सूक्ष्म- संपराय
संयत और यथाख्यात संयत, निर्ग्रन्थवत् है । (२)
विवेचन - सामायिक संयत, सवेदी और अवेदी दोनों होते हैं, क्योंकि नौवें गुणस्थान तक सामायिक चारित्र होता है और नौवें गुणस्थान में वेद का उपशम अथवा क्षय होता है । इसलिये वहां सामायिक संयत 'अवेदक' होता है और उससे पूर्व 'रावेदक' होता है । यदि वह सवेदक होता है, तो तीन वेद वाला होता है । यदि अवेदी होता है, तो उपशान्तवेदी या क्षीणवेदी होता है ।
परिहारविशुद्धिक संयत, पुलाक के समान पुरुषवेदी या पुरुषनपुंसकवेदी होता है । सूक्ष्म- संपराय संयत और यथाख्यात संयत, उपशान्तवेदी या क्षोणवेदी होने से अवेदी होते हैं ।
राग - वीतराग
८ प्रश्न - सामाइयसंजए णं भंते! किं सरागे होज्जा वीयरागे होजा ?
८ उत्तर - गोयमा ! सरागे होज्जा, णो वीयरागे होज्जा । एवं जाव सुहुमसंपरायसंजए । अहक्खायसंजए जहा णियंटे (३) । भावार्थ- ८ प्रश्न- हे भगवन् ! सामायिक संयत, सराग होते हैं या वीतराग ?
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