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भगवती मूत्र-श. २५ उ. ७ प्रतिसेवना
पुलाक आदि परिणाम भी चारित्र रूप ही है ।
प्रतिसेवना
१५ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! किं पडिसेवए होजा, अपडिसेवए होजा ?
१५ उत्तर-गोयमा ! पडिमेवए वा होजा, अपडिसेवए वा होजा । जइ पडिसेवए होजा, किं मूलगुणपडिसेवए होजा, सेसं जहा पुलागस्स । जहा सामाइयसंजए एवं छेओवट्टावणिए वि ।
भावार्थ-१५ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत, प्रतिसेवी होते हैं या . अप्रतिसेवी ?
... १५ उत्तर-हे गौतम ! प्रतिसेवी भी होते हैं और अप्रतिसेवी भी। . प्रश्न-हे भगवन् ! यदि प्रतिसेवी होते हैं, तो 'मूलगुण प्रतिसेवी' होते
उत्तर-शेष कथन पुलाक के समान । सामायिक संयत के समान छेदोपस्थापनीय संयत भी जानना चाहिए।
१६ प्रश्न-परिहारविसुद्धियसंजए-पुच्छा ।
१६ उत्तर-गोयमा ! णो पडिसेवए होजा, अपडिसेवए होजा। एवं जाव अहक्खायसंजए (६)।
भावार्थ-१६ प्रश्न-हे भगवन् ! परिहारविशुद्धिक संयत 'प्रतिसेवी' होते हैं या 'अप्रतिसेवी' ?
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