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भगवती मूत्र--श. २५ उ. ७ शरीर द्वार
में या गृहलिंग में होते हैं ?
२२ उत्तर-हे गौतम ! सभी वर्णन पुलाक के समान जानो। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत गी।
२३ प्रश्र-परिहारविसुद्धियसंजए णं भंते ! किं-पुन्छा । ___२३ उत्तर-गोयमा ! दव्वलिंगं पि भावलिंगं पि पडुच्च सलिंगे होजा, णो अण्णलिंगे होजा, णो गिहिलिंगे होजा। सेसा. जहा सामाइयसंजए (९)।
भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! परिहारविशुद्धिक संयत, स्वलिंग में, अन्यलिंग में या गृहलिंग में होते हैं ? .
२३ उत्तर-हे गौतम ! द्रलिंग और भावलिंग की अपेक्षा स्वलिंग में ही होते हैं, अन्यलिंग या गृहलिंग में नहीं होते। सूक्ष्म-सम्पराय और यथाख्यात संयत, सामायिक संयत के समान हैं।
शरीर द्वार
२४ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! कइसु सरीरेसु होजा ?
२४ उत्तर-गोयमा ! तिसु वा चउसु वा पंचसु वा जहा कसाय. कुसीले । एवं छेओवट्ठावणिए वि, सेसा जहा पुलाए (१०)।
भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत के शरीर कितने होते हैं?
२४ उत्तर-हे गौतम ! तीन, चार अथवा पाँच शरीरों में होते हैं इत्यादि कषाय कुशीलवत् । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी। शेष संयतों का कथन पुलाक के समान (१०)।
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