________________
३४६२
भगवती सूत्र -श. २५ उ. ७ चारित्र-पर्यव
भावार्थ-४१ प्रश्न-हे भगवन् ! सूक्ष्म-सम्पराय संयत, सामायिक संयत के परस्थान सन्निकर्ष (विजातीय) चारित्र-पर्यवों से हीन, तुल्य या अधिक हैं ?
४१ उत्तर-हे गौतम ! हीन और तुल्य नहीं, अधिक है और अनन्त गुण अधिक है। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत और परिहारविशुद्धिक संयत के साथ भी जानना चाहिए । स्वस्थान सन्निकर्ष (सजातीय ) चारित्र-पर्यवों की अपेक्षा कदाचित् हीन, कदाचित तुल्य और कदाचित अधिक होते है। यदि हीन होते हैं, तो अनन्त गुण हीन होते हैं और अधिक होते हैं तो अनन्त गुण अधिक होते हैं।
• ४२ प्रश्न-सुहुमसंपरायसंजयस्स अहक्खायसंजयस्स परट्टाणपुच्छा ।
४२ उत्तर-गोयमा ! होणे, णो तुल्ले, णो अभहिए, अणंतगुणहीणे । अहफ्खाए हेछिल्लाणं चउण्ह वि णो हीणे. णो तुल्ले, अब्भहिए, अणंतगुणमहिए। सट्टागे णो हीणे, तुल्ले णोअब्भहिए।
भावार्थ-४२ प्रश्न-हे भगवन् ! सूक्ष्म-सम्पराय संयत, यथाख्यात संयत के परस्थान सन्निकर्ष चारित्र-पर्यवों की अपेक्षा हीन, तुल्य या अधिक होते हैं ?
४२ उत्तर-हे गौतम ! होन होते हैं, किन्तु तुल्य और अधिक नहीं होते । अनन्त गुण हीन होते हैं। यथाख्यात संपत नीचे के चार संयतों की अपेक्षा हीन नहीं, तुल्य भी नहीं, किन्तु अधिक है और अनन्त गुण अधिक हैं। स्वस्थान सन्निकर्ष चारित्र-पर्यवों की अपेक्षा हीन नहीं, अधिक भी नहीं, किन्तु तुल्य हैं।
४३ प्रश्न-एएसि णं भंते ! सामाइय-छेओवट्ठावणिय-परिहार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org