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शतक २५ उद्देशक ५
vav(PARRRRRपर्यव के भेद
१ प्रश्न-कइविहां णं भंते ! पजवा पण्णता ?
१ उत्तर-गोयमा ! दुविहा पजवा पण्णत्ता, तं जहां-जीवपजवा य अजीवपजवा य । पज्जवपयं गिरवसेसं भाणियव्वं जहा पण्णवणाए।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्यव कितने प्रकार के कहे हैं ?
१ उत्तर-हे गौतम ! पर्यव दो प्रकार के कहे हैं । यथा-जीवपर्यव और • अजीवपर्यव । यहां प्रज्ञापना सूत्र का पांचवां पर्यव पद सम्पूर्ण कहना।
विवेचन-पर्यव, गुण, धर्म, विशेष, पर्यय और पर्याय, ये सब शब्द एकार्थवाची (पर्यायवाची) हैं । जीवपर्यव और अजीवपर्यव के लिये प्रज्ञापना सूत्र के पांचवें पद का अतिदेश किया गया है । जीव के पर्यव अनन्त होते हैं।
आवलिका यावत् पुद्गल परिवर्तन के समय
२ प्रश्न-आवलिया णं भंते ! किं संखेजा समया, असंखेन्जा समया, अणंता समया ?
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