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भगवती सूत्र - श. २५ उ ६ सन्निकर्ष द्वार
७४ प्रश्न - पुलाए णं भंते! बउसस्स परट्ठाणसण्णिगासेणं चरित - पज्जवेहिं किं हीणे, तुल्ले, अब्भहिए ?
७४ उत्तर --गोयमा ! हीणे, णो तुल्ले, णो अन्भहिए, अनंतगुणही । एवं डिसेवणाकुसीलस्स वि । कसायकुसीलेणं समं छट्टा - वडिए जव सट्टा । णियंठस्स जहा बउसस्स, एवं सिणायस्स वि ।
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'भावार्थ - ७४ प्रश्न - हे भगवन् ! पुलाक अपने चारित्र - पर्यायों से, बकुश के परस्थान-निकर्ष (विजातीय चारित्र - पर्याय) की अपेक्षा हीन है, तुल्य है या अधिक है ?
७४ उत्तर - हे गौतम! हीन होते हैं, तुल्य या अधिक नहीं होते । अनन्त गुण हीन होते हैं। इसी प्रकार प्रतिसेवना- कुशील से भी जानना चाहिये । कषाय- कुशील से पुलाक के स्वस्थान के समान छह स्थान पतित कहना चाहिये । कुश के समान निग्रंथ और स्नातक से भी कथन करना चाहिये ।
६.
७५ प्रश्न - उसे णं भंते ! पुलागस्स परट्ठाणसण्णिगासेणं चरित्पज्जवेहिं किं होणे, तुल्ले, अन्भहिए ?
७५ उत्तर - गोयमा ! णो हीणे, णो तुल्ले, अव्भहिए, अनंतगुणमभहिए ।
भावार्थ - ७५ प्रश्न हे भगवन् ! बकुश, पुलाक के परस्थान सन्निकर्ष से चारित्रपर्याय की अपेक्षा हीन है, तुल्य है या अधिक है ?
७५ उत्तर - हे गौतम! हीन नहीं और तुल्य भी नहीं, किन्तु अधिक है, अनन्त गुण अधिक है ।
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