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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ आहारक द्वार.
रहित जीव 'नोसंज्ञोपयुक्त' कहलाता है। अतः आहारादि के विषय में आसक्ति रहित होने से पुलाक, निर्ग्रथ और स्नातक 'नोसंज्ञोपयुक्त' होते हैं । यद्यपि निग्रंथ और स्नातक तो वीतराग होने से नोसंज्ञोपयुक्त ही होते हैं, किन्तु 'पुलाक सरागी होने से नोसंज्ञोपयुक्त कैसे हो सकते हैं ?' इस प्रकार की शंका नहीं करनी चाहिये। क्योंकि सराग अवस्था में आसक्ति रहितपना सर्वथा नहीं हो सकता- ऐसी बात नहीं है । बकुशादि सराग होने पर संज्ञा रहित कहे हैं । इस विषय में चूर्णिकार ने कहा है कि- 'नोसंज्ञा अर्थात् ज्ञानसंज्ञा ।' इनमें पुलाक, निग्रंथ और स्नातक नोसंज्ञोपयुक्त होते हैं अर्थात् ज्ञानप्रधान उपयोग वाले होते हैं, परन्तु आहारादि संज्ञा के उपयोग वाले नहीं होते । बकुश आदि तो संज्ञोपयुक्त और नोसंज्ञोपयुक्त दोनों प्रकार के होते हैं, क्योंकि उनके इसी प्रकार के संयम स्थानों का सद्भाव है ।
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आहारक द्वार
१२३ प्रश्न - पुलाए णं भंते! किं आहारए होज्जा, अणाहारए
होज्जा ?
२३ उत्तर - गोयमा ! आहारए होज्जा, णो अणाहारए होना । एवं जाव. णियंठे ।
?
भावार्थ - १२३ प्रश्न - हे भगवन् ! पुलाक, आहारक होते हैं या अनाहारक १२३ उत्तर - हे गौतम ! आहारक होते हैं, अनाहारक नहीं होते । इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ पर्यन्त ।
१२४ प्रश्न - सिणाए - पुच्छा ।
१२४ उत्तर - गोयमा ! आहारए वा होजा, अणाहारए वा
होज २६ ।
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