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भगवती सूत्र - श २५ उ. ६ अन्तर द्वार
विवेचन - एक वचन सम्बन्धी पुलाक आदि का काल परिमाण बता कर, बहुवचन सम्बन्धी काल परिमाण बताया है। एक पुलाक अपने अन्तर्मुहूर्त के अन्तिम समय में वर्तमान है, उसी समय में दूसरा मुनि पुलाकपन को प्राप्त करे, तब दोनों पुलाकों का एक समय में सद्भाव होता है। इस प्रकार अनेक पुलाकों का ( दो पुलाक हो, तो भी 'अनेक' कहलाते हैं) जन्य काल एक समय होता है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होता है, क्योंकि पुलाक एक समय में उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व ( दो हजार से नौ हजार तक ) हो सकते हैं । वे बहुत होने पर भी उनका काल अन्तर्मुहूर्त ही होता है, किन्तु एक पुलाक की स्थिति के अन्तर्मुहूर्त से अनेक पुलाकों की स्थिति का अन्तर्मुहूर्त बड़ा होता है ।
कुशादि का स्थिति काल तो सर्वाद्धा ( सर्व काल ) होता है, क्योंकि वे सदैव मिलते हैं ।
अन्तर द्वार
१४२ प्रश्न - पुलागस्स णं भंते ! केवइयं कालं अंतरं होइ ? १४२ उत्तर - गोयमा ! जहण्णेणं अतोमुहुत्तं, उकोसेणं अनंतं कालं, अनंताओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढपोग्गलपरिय देणं । एवं जाव नियंठस्स ।
भावार्थ - १४२ प्रश्न - हे भगवन् ! पुलाक का अन्तर कितने काल का होता है ?
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१४२ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल | काल की अपेक्षा अनन्त अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी और क्षेत्र की अपेक्षा देशोन अपार्द्ध पुद्गल - परावर्तन का अन्तर होता है । इसी प्रकार यावत् निग्रंथ तक ।
१४३ प्रश्न - सिणायस्स - पुच्छा । १४३ उत्तर - गोयमा ! णत्थि अंतरं ।
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