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भगवती गूत्र-२५ श. उ. ६ कर्म-वेदना द्वार
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बांधता है, क्योंकि आयुष्य का बन्ध सातवें अप्रमत्त गुणस्थान तक ही होता है। कषायकुशील के बादर कषायोदय का अभाव होने से मोहनीय कर्म नहीं बांधता। अत: कषायकुशील आयुष्य और मोहनीय के अतिरिक्त शेष छह कर्म-प्रकृतियाँ बाँधता है। निर्ग्रन्थ और स्नातक योग निमित्तक एक वेदनीय कर्म को ही बाँधता है, क्योंकि कर्मबन्ध के हेतुओं में उसके केवल योग का ही सद्भाव होता है । स्नातक के अयोगी गुणस्थान में, बन्ध हेतु का अभाव होने से अबन्धक होता है ।
कर्म-वेदना द्वार १०७ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ वेदेइ ? -
१०७ उत्तर-गोयमा ! णियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेइ । एवं जाव कसायकुसीले।
___भावार्थ-१०७ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, कर्म की कितनी प्रकृतियों - का वेदन करते हैं ?
१०७ उत्तर-हे गौतम ! नियम से आठों कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं । इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील पर्यंत ।
- १०८ प्रश्न-णियंठे णं-पुच्छा।
...१०८ उत्तर-गोयमा ! मोहणिजवजाओ. सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेह । ____ भावार्थ-१०८ प्रश्न-हे भगवन् ! निर्ग्रन्थ, कर्म की कितनी प्रकृतियों का बेदन करते हैं ?
१०८ उत्तर-हे गौतम ! मोहनीय कर्म छोड़कर सात कर्म-प्रकृतियों का सेवन करते हैं।
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