SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती गूत्र-२५ श. उ. ६ कर्म-वेदना द्वार ३४११ बांधता है, क्योंकि आयुष्य का बन्ध सातवें अप्रमत्त गुणस्थान तक ही होता है। कषायकुशील के बादर कषायोदय का अभाव होने से मोहनीय कर्म नहीं बांधता। अत: कषायकुशील आयुष्य और मोहनीय के अतिरिक्त शेष छह कर्म-प्रकृतियाँ बाँधता है। निर्ग्रन्थ और स्नातक योग निमित्तक एक वेदनीय कर्म को ही बाँधता है, क्योंकि कर्मबन्ध के हेतुओं में उसके केवल योग का ही सद्भाव होता है । स्नातक के अयोगी गुणस्थान में, बन्ध हेतु का अभाव होने से अबन्धक होता है । कर्म-वेदना द्वार १०७ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ वेदेइ ? - १०७ उत्तर-गोयमा ! णियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेइ । एवं जाव कसायकुसीले। ___भावार्थ-१०७ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, कर्म की कितनी प्रकृतियों - का वेदन करते हैं ? १०७ उत्तर-हे गौतम ! नियम से आठों कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं । इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील पर्यंत । - १०८ प्रश्न-णियंठे णं-पुच्छा। ...१०८ उत्तर-गोयमा ! मोहणिजवजाओ. सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेह । ____ भावार्थ-१०८ प्रश्न-हे भगवन् ! निर्ग्रन्थ, कर्म की कितनी प्रकृतियों का बेदन करते हैं ? १०८ उत्तर-हे गौतम ! मोहनीय कर्म छोड़कर सात कर्म-प्रकृतियों का सेवन करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy