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________________ ३४१० भगवती मूत्र-श. २५ उ. ६ कर्म-बन्ध द्वार माणे आउय-मोहणिजवजाओ छक्कम्मप्पगडीओ बंधइ । भावार्थ-१०४ प्रश्न-हे भगवन् ! कषाय-कुशील, कर्म की कितनी प्रकृतियां बांधता है ? . १०४ उत्तर-हे गौतम ! सात, आठ या छह कर्म-प्रकृतियां बांधता है। सात बांधता हुआ आयुष्य के अतिरिक्त शेष सात कर्म-प्रकृतियों का बंध करता है । आठ बांधता हुआ प्रतिपूर्ण आठ कर्म-प्रकृतियां बांधता है । छह बांधता हुभा आयुष्य और मोहनीय कर्म छोड़ कर छह कर्म-प्रकृतियां बांधता है । १०५ प्रश्न-णियंठे णं-पुच्छा। १०५ उत्तर-गोयमा ! एगं वेयणिजं कम्मं बंधइ ।। भावार्थ-१०५ प्रश्न-हे भगवन् ! निग्रंथ, कर्म की कितनी प्रतियां बांधता है ? : १०५ उत्तर-हे गौतम ! वह एकमात्र वेदनीय कर्म बांधता है। . १०६ प्रश्न-सिणाए-पुच्छा। १०६ उत्तर-गोयमा ! एगविहबंधए वा, अबंधए वा । एगं बंधमाणे एगं वेयणिज कम्मं बंधइ २१ । भावार्थ-१०६ प्रश्न-हे भगवन् ! स्नातक, कर्म की कितनी प्रकृतियां बांधता है ?.. १०६ उत्तर-हे गौतम ! एक कर्म-प्रकृति बांधता है, अथवा नहीं की बांधता है । एक को बांधता हुआ वेदनीय कर्म बांधता है। - विवेचन-पुलाक अवस्था में आयुष्य का बन्ध नहीं होता, क्योंकि उस अवस्था में उसके आयुष्य बन्ध योग्य अध्यवसाय नहीं होते। - ' आयुष्य के दो भाग बीत जाने पर तीसरे भाग में आयु-बन्ध होता है । किन्तु आयुष्य के पहले के दो भागों में आयु-बन्ध नहीं होता, इसलिये बकुश आदि सात या आठ कर्म-प्रकृतियों को बांधते हैं । कषाय-कुशील, सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में आयुष्य नहीं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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