________________
भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ उपयोग द्वार
३३९९
-
कायजोगी वा होजा । एवं जाव णियंठे ।
भावार्थ-८३ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक सयोगी होते हैं या अयोगी ? ८३ उत्तर-हे गौतम ! सयोगी होते हैं, अयोगी नहीं होते।
प्रश्न-सयोगी होते हैं, तो मनयोगी होते हैं, वचनयोगी होते हैं या काययोगी होते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! वे मनयोगी, वचनयोगी और काययोगी होते हैं। इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ पर्यन्त ।
८४ प्रश्न-सिणाए णं-पुच्छा।
८४ उत्तर-गोयमा ! सयोगी वा होजा, अयोगी वा होजा। जह सयोगी होज्जा किं मणजोगी होजा-सेसं जहा पुलागस्स १६।
भावार्थ-८४ प्रश्न-हे भगवन् ! स्नातक सयोगी होते हैं या अयोगी ?
८४ उत्तर-हे गौतम ! सयोगी भी होते हैं और अयोगी भी । यदि सयोगी होते हैं, तो क्या मनयोगी होते हैं इत्यादि सभी पुलाक के समान है।
विवेचन-स्नातक सयोगी और अयोगी दोनों प्रकार के होते हैं। शैलेशी अवस्था से पहले तक वे सयोगी होते हैं और शैलेशी अवस्था में अयोगी बन जाते हैं।
उपयोग द्वार ८५ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! किं सागारोवउत्ते होजा, अणागारोवउत्ते होज्जा ? . । ८५ उत्तर-गोयमा ! सागारोवउत्ते वा होजा, अणागारोवउत्ते वा होजा । एवं जाव सिणाए १७ ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org