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T. २५ उ. ६ काल द्वार
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होते हैं, अकर्मभूमि में नहीं, किन्तु संहरण की अपेक्षा कर्मभूमि में भी होते हैं और अकर्म ममि में भी । इसी प्रकार यावत् स्नातक पर्यन्त ।
विवेचन--जहाँ असि, मषि और कृषि द्वारा जीविकोपार्जन की जाती हो तथा तप, संयम आदि आध्यात्मिक अनुष्ठान हों, उसे 'कर्मभूमि' कहते हैं । पाँच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह---ये पन्द्रह क्षेत्र 'कर्मभूमि' हैं । जहाँ असि, मषि और कृषि आदि द्वारा आजीविका न की जाती हो तथा तप, संयम आदि आध्यात्मिक अनुष्ठान न हो, उसे 'अकर्मभूमि' कहते हैं । पाँच हैमवत, पाँच हैरण्यवत, पाँच हरिवर्ष, पाँच रम्यक्वर्ष, पाँच देवकुरु और पांच उत्तरकुरु--ये तीस क्षेत्र ‘अकर्मभूमि' हैं । इनमें असि, मषि और कृषि का व्यापार नहीं होता। इन क्षेत्रों में दस प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं । इन्हीं से वहाँ के मनुष्य अपना निर्वाह करते हैं। कर्म न करने से और कल्पवृक्षों द्वारा भोग प्राप्त होने से इन क्षेत्रों को 'भोगभूमि' भी कहते है। यहाँ के मनुष्य को 'भोगभूमिज' कहते हैं । यहाँ के स्त्रीपुरुष जोड़े से जन्म लेते हैं, इसलिये इन्हें 'युगलिक' कहते हैं।
जन्म (उत्पत्ति) और सद्भाव (चारित्र भाव का अस्तित्व) की अपेक्षा पुलाक कर्मभूमि में होते हैं अर्थात् पुलाक का जन्म कर्मभूमि में ही होता है और संयम अंगीकार कर वह वहीं विचरता है । वह अकर्मभूमि में उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि वहाँ उत्पन्न हुए मनुष्य को चारित्र (संयम) की प्राप्ति नहीं होती। अतएव वहाँ उसका सद्भाव भी नहीं होता । संहरण की अपेक्षा भी वह अकर्मभूमि में नहीं होता, क्योंकि पुलाक लब्धि वाले का देव आदि कोई भी संहरण नहीं कर सकते ।
काल द्वार
५१ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! किं ओसप्पिणिकाले होजा, उस्सप्पिणिकाले होजा, णोओसप्पिणि-णोउस्सप्पिणिकाले वा होज्जा ?
५१ उत्तर-गोयमा ! ओसप्पिणिकाले वा होजा, उस्सप्पिणि. काले वा होजा, णोओमप्पिणी-णोउस्सप्पिणिकाले वा होजा।
भावार्थ-५१ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, 'अवसर्पिणी काल' में होते हैं,
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