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भगवतीं मूत्र-श. २५ उ. ६ गति द्वार
५९ उत्तर-गोयमा ! देवगइं गच्छइ ।
प्रश्न-देवगइं गच्छमाणे किं भवणवासीसु उववजेज्जा, वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा, जोइसि०, वेमाणिएमु उववजेजा ? : उत्तर-गोयमा ! णो भवणवासीसु, णो वाण०, णो जोइ०, वेमाणिएमु उववजेजा । वेमाणिएसु उववजमाणे जहण्णेणं सोहम्मे कप्पे, उकोसेणं सहस्सारे कप्पे उववजेजा । बउसे णं एवं चेव । णवरं उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे । पडिसेवणाकुसीले जहा बउसे । कसायकुसीले जहा पुलाए । णवरं उक्कोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उव
वजेजा।
भावार्थ-५९ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक मर कर किस गति में जाते हैं ? ५९ उत्तर-हे गौतम ! देवगति में जाते हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! यदि देवगति में जाते हैं, तो क्या भवनपति में उत्पन्न होते हैं, वाणव्यन्तर में, ज्योतिषी में या वैमानिक में ? '
उत्तर-हे गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्योतिषियों में उत्पन्न नहीं होते, किन्तु वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं । वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हुए जघन्य सौधर्म देवलोक में और उत्कृष्ट सहस्रार देवलोक में उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार बकुश भी, किन्तु वह उत्कृष्ट अच्युत देवलोक में उत्पन्न होते हैं। प्रतिसेवना-कुशील, बकुश के समान है । कषाय-कुशील, पुलाक के समान है, किन्तु उत्कृष्ट अनुत्तर विमान में उत्पन्न होते हैं। .६० प्रश्न-णियंठे णं भंते ! ०? ... ६० उत्तर-एवं चेव जाव वेमाणिएसु उववजमाणे अजहण्ण
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